Tuesday, October 9, 2012


आदिवासियों पर बर्बर अत्याचार
संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार आयोग से गुहार
कार्यालय संवाददाता

नई दिल्ली। आर्य समाज के विश्व परिषद के अध्यक्ष एवं दासत्व पर संयुक्त राष्ट्र ट्रस्ट फंड के पूर्व अध्यक्ष स्वामी अग्निवेश ने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की दुर्दशा पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय की एक प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयुक्त श्रीमती नवी पिल्लई को पैलेस डी नेशन, जिनेवा, स्वीटजरलैंड में आयोजित 21वें सत्र के बैठक के  दौरान भेंट किया। 
स्वामी अग्निवेश ने संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार आयुक्त को भारत में मानवाधिकार समस्याओं के विषय में विस्तृत विवरण दिया। इस विषय में गहन विचार विमर्श और चर्चा के पश्चात आयुक्त श्रीमती पिल्लई ने भारत में मानवाधिकार उल्लंघन संबंधी सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को रेखांकित करते हुए विभिन्न आस्थाओं को लेकर लंबित पूर्वाग्रहों को समाप्त करने की दिशा में पहल करने की आवश्यकता पर बल दिया।


14 सितंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के साथ स्वामी अग्निवेश की उक्त बैठक में विश्वव्यापी परियोजना पर ‘‘रक्षा की जिम्मेदारी’’ के निर्देशक डा. रामामणि भी शामिल हुए।
स्वामी अग्निवेश में बैठक में भारत में हो रहे मानवाधिकार संबंधी घोर उल्लंघन का ब्यौरा पेश किया एवं विस्तृत विवरण देते हुए बताया कि किस तरह भारत के मूलनिवासी आदिवासियों पर, विशेषकर खनिज संपदा से भरपूर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) द्वारा जघन्य एवं अमानवीय अत्याचार किया जा रहा है। 
स्वामी ने विस्तृत ब्यौरा देते हुए आयोग को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रोफेसर नंदिनी सुंदर बनाम छत्तीसगढ़ सरकार के मामले में 5 जुलाई 2011 को न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह निज्जर द्वारा पारित ऐतिहासिक निर्णय में उल्लेखित सलवा जुडूम द्वारा आदिवासियों का नरसंहार की जानकारी दी, जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर अंचल के दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर जिले के 900 गांवो से 85 हजार आदिवासियों को खदेड़ दिया गया, जिसके परिणामस्वरुप 1700 निरीह और निर्दोष आदिवासी मामूली अपराधों के आरोप में पिछले कई वर्षों से जेलों में सड़ रहें हैं, तथा थीमापुरम, तादमेटला तथा मोरापल्ली नामक तीन गांवों के घरों को जला कर मटियामेट कर दिया गया जबकि 11 से 16 मार्च 2011 तक दरिदंगी की हद पार करते हुए आदिवासियों को हत्या और बलात्कार का शिकार बनाया गया और यहीं नहीं इस नरसंहार के शिकार आदिवासियों को राहत सामग्री ले जाते समय खुद उन (स्वामी अग्निवेश) पर 26 मार्च 2011 को जानलेवा हमला किया गया। 
आदिवासियों पर 28 जून 2012 को हुए दर्दनाक अत्याचार की दहशत भरी घटना का विवरण देते हुए स्वामी अग्निवेश ने बताया कि किस तरह सुरक्षा बलों द्वारा 19 निहत्थे निरीह आदिवासियों की नृशंस हत्या की गई, जिनमें 7 मासूम स्कूली छात्र थे। 
स्वामी अग्निवेश ने संयुक्त राष्ट्र संघ आयुक्त से उक्त नरसंहार के विषय में हस्तक्षेप करके भारत सरकार द्वारा इस विषय में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट लेने का अनुरोध किया।
स्वामी अग्निवेश ने मानवाधिकार आयोग को सूचित किया कि उन्होंने इस विषय में राष्ट्रपति महामहिम प्रणब मुखर्जी को 23 अगस्त 2012 को ज्ञापन सौंप कर आदिवासियों के प्रति न्याय की मांग की है। 
संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार आयोग द्वारा भारत में आदिवासियों पर हो रहे अमानवीय अत्याचार पर गंभीर संवेदना व्यक्त की गई और कहा गया कि खनिज संपदा से भरपूर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में वहां के मूलनिवासियों पर हो रहे अत्याचारों की तरह ही भारत के आदिवासियों को भी जघन्य अत्याचार का निशाना बनाया जा रहा है, जो अत्यंत खेद जनक है।
स्वामी अग्निवेश के आग्रह और आमंत्रण पर श्रीमती नवी पिल्लई ने भारत आकर पीड़ित आदिवासी परिवारों से मिलने के लिए आमंत्रण स्वीकार करते हुए बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग द्वारा अगले वर्ष के प्रथम चरण में वे भारत का दौरा करेंगी।

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